उदयपुर। राजस्थान के ख्यात विद्वान, लोक मनीषी उदयपुर निवासी इतिहासकार डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू ने खजुराहो में जनजातीय लोक कला एवं बोली विकास अकादमी की ओर से ‘श्लोक में अलंकरण’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में हिस्सा लिया और बीज वक्तव्य दिया।
डॉ. जुगनू ने कहा कि अलंकरण- भूमि का हो या भित्ति अथवा देह का हो , सबका हेतु धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रहा है। भारतीयों का मन अलंकरण प्रिय और अलंकरणों का साधक रहा है। अलंकरण सज्जा के साथ स्वास्थ्य और समृद्धि के सूचक होते हैं। यही कारण है कि द्वार, देहरी, दीवार और देवालय तक उत्तमोत्तम रूप से श्रृंगारित किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि इस विषय पर सैकड़ों ग्रंथों में विचार हुआ है। यहां भाषा, भाव, भूमि और भवन तक अलंकरण मिलता है। उन्होंने कहा कि भारत में अलंकरण बहुत आत्मिक विषय है और नर- नारी सभ्यता के उषाकाल से देह, भूमि और भित्तियों का अलंकरण करते रहे हैं।
संगोष्ठी में ‘भीलों के भारत’ विषय के विद्वान गुजरात से आए भगवानदास पटेल ने अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कहा कि अलंकारों का आधार हमें भील और अन्य जनजातियों के संस्कार व संस्कृति में खोजना चाहिए। जनजातियां अपने अनुष्ठानों में अलंकारों और सजावट का उपयोग करती है। उन्होंने डूंगरी भीलों के पर्व के प्रसंग में अलंकारों की अंतरूकथाओं को भी सोदाहरण बताया।
कार्यक्रम के आरंभ में अकादमी के निदेशक डॉ. धर्मेंद्र पारे ने संगोष्ठी के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला और देश भर से आए सभी विद्वानों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि अलंकरण प्राकृतिक रूप में हर काया को सुलभ होते हैं और कृत्रिम रूप में बनाए जाते हैं। ये हमारे अनुष्ठान, लोकाचार और व्रत, त्योहारों को पूर्णता प्रदान करते हैं।
पुस्तक का हुआ विमोचन:
इस अवसर पर डॉ. श्रीकृष्ण जुगनू द्वारा लिखित अलंकरण: देह, भूमि और भित्ति पुस्तक तथा अकादमी द्वारा संगोष्ठी पर केंद्रित चौमासा (त्रैमासिक) के 121 वें अंक का विमोचन किया गया। संचालन शुभम चौहान ने किया।