उदयपुर। वर्तमान में वन्यजीवों एवं मानव प्रजाति के बीच बढ़ रहे संघर्ष एवं आये दिन हो रही घटनाओं को देखते हुए वन्यजीवों के उचित संरक्षण के साथ उन्हें उपयुक्त व अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराने के लिए ‘वन्यप्राणी बचाव एवं पुनर्वास‘ शीर्षक से एक पुस्तक लिखी गई है। यह पुस्तक उदयपुर के ख्यातनाम पर्यावरणविद् एवं वन विभाग के सेवानिवृत अधिकारी डॉ.सतीश कुमार शर्मा ने लिखी है।
डॉ शर्मा के अनुसार प्राकृतिक आवासों में तरह-तरह के मानवीय व्यवधान कई जगह वन्य प्राणियों को अपना प्राकृतिक आवास छोड़कर भटकने पर मजबूर कर रहे हैं। भटकते ये प्राणी कई बार मानवीय आबादियों, खेतों, सड़कों, रेलवे लाइनों, औद्योगिक परिसरों आदि विषम जगहों पर पहुंच जाते हैं तथा कई बार वहां किसी दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं तो कई बार स्वयं दुर्घटना का कारण भी बन जाते हैं। इन परिस्थितियों में जनधन की हानि रोकने एवं वन्य प्राणियों को संकट से निकालने हेतु त्वरित बचाव एवं पुनर्वास कार्यों की जिम्मेदारी वन विभाग पर आ जाती है। उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते हुए इस जिम्मेदारी को कुशलता से शीघ्रता एवं सुरक्षा पूर्वक पूर्ण करने की व्यावहारिक विधियों की विस्तृत जानकारी इस पुस्तक में समाहित है जो वन विभाग एवं वन्य प्राणी सुरक्षा से जुड़े विभिन्न संस्थाओं की क्षमता को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होगी।
वन्यजीवों के संरक्षण एवं पुनर्वास के लिए उपयोगी
विश्व प्रकृति निधि भारत के सीईओ रवि सिंह ने इस पुस्तक का आमुख लिखते हुए इसे वन्यजीव संरक्षण एवं वन्यजीवों के पुनर्वास के लिए उपयोगी बताया है। उन्होंने कहा कि वन्यजीवों को उनके व्यवहार के अनुरूप वातावरण उपलब्ध कराने की आवश्यकता है तभी मानव एवं वन्यजीवों के बीच संघर्ष को समाप्त किया जा सकता है।
119 रियल रेसक्यू के अनुभव शामिल
डॉ सतीश शर्मा ने बताया कि इस पुस्तक में 119 वास्तविक रेस्क्यू ऑपरेशन के अनुभव को भी स्थान दिया गया है। इसके तहत चिडि़या घरों के 13, स्तनधारियों के 32, पैंथर के 34, टाइगर के 8, पक्षियों के 9, सरीसृपों के 23 रेस्क्यू ऑपरेशन का वर्णन किया गया है और बताया गया है कि इन रेस्क्यू ऑपरेशन में किस तरह की सावधानियां बरती जानी चाहिए।
36 वर्षों। का सुदीर्घ। अनुभव
डॉ. सतीश कुमार शर्मा ने वन विभाग राजस्थान में 36 वर्षों से अधिक राजकीय सेवा प्रदान की है। इस दौरान श्रेष्ठ अनुसंधान, लेखन, वानिकी विकास एवं वन्य जीव संरक्षण प्रबंधन कार्यों पर डॉ गोरख प्रसाद पुरस्कार 1986, अखिल भारतीय वानिकी पुरस्कार 1990, वन पालक पुरस्कार 1995, वानिकी लेखन पुरस्कार 1996, विज्ञान वाचस्पति 1997, डॉ. सलीम अली वन्यजीव राष्ट्रीय फेलोशिप 1997, इंदिरा प्रियदर्शनी वृक्षमित्र पुरस्कार 1998, मेदिनी पुरस्कार 1999 व 2006, इंडियन फॉरेस्ट अवॉर्ड 1999, डॉ. रतन कुमारी पदक 2000, राजस्थान सिविल सेवा पुरस्कार 2013 मिर्जा राजा राम सिंह पुरस्कार 2014, सोसायटी फॉर प्रोमोशन ऑफ माइंस एण्ड रिसर्च उदयपुर द्वारा प्रदत लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड 2019, जाइश वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन अवॉर्ड 2019, टाइगर वॉच सवाई माधोपुर द्वारा प्रदत ‘‘द सुजान राजस्थान लाइफ टाइम वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन अवॉर्ड 2020 आदि प्राप्त हुए।
डॉ. शर्मा ‘‘आर्निथोबॉटनी ऑफ इंडियन वीवर बर्ड‘‘, ‘‘लोक प्राणी विज्ञान‘‘, ‘‘वन्यजीव प्रबंधन‘‘, ‘‘आर्किड्स ऑफ डेजर्ट एण्ड सेमी एरिड बायोजियोग्राफिक जोन्स ऑफ इंडिया‘‘, ‘‘वन्य प्राणी प्रबंधन एवं पशु चिकित्सक‘‘, ‘‘फौनल एण्ड फलोरल एंडेमिन्स इन राजस्थान‘‘, ‘‘ट्रेडीशनल टैक्निक्स यूज्ड टू प्रोजेक्ट फॉर्म एंड फॉरेस्ट्स इन इंडिया‘‘, ‘‘वन विकास एवं पारिस्थितिकी‘‘ वन पौधशालारू स्थापना एवं प्रबंधन‘‘ एवं ‘‘जैव विविधता संरक्षण‘‘ नामक पुस्तकों के प्रणेता रहे। इनके 640 से अधिक लोकप्रिय एवं वैज्ञानिक लेख हिन्दी व अंग्रेजी भाषा के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं एवं अनुसंधान जनोले में प्रकाशित हो चुके है।