उदयपुर , नन्द बाबू आधुनिक कविता के पुरोधा थे, वे समाजवादी कार्यकर्ता थे, किंतु उनकी रचनाओं में समाजवादी समाजवाद के बजाए समय और परिस्थितियों का मर्म था। कविता उनके लिए मानवानुभूति वाले आत्मानुभूति का विषय था। उक्त विचार
साहित्य अकादमी नई दिल्ली तथा नन्द चतुर्वेदी फाउंडेशन उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान मे नंद चतुर्वेदी जन्मशतवार्षिकी परिसंवाद में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए प्रख्यात साहित्यकार नंद किशोर आचार्य ने व्यक्त किए।
आचार्य ने अपने वक्तव्य मे कहा कि मेरा सौभाग्य है कि लोकार्पण कार्यक्रम मे मुझे अवसर मिला। कविता अपने आप मे ज्ञान की प्रक्रिया है, कविता पूर्व निर्धारित सत्य का आँकलन नही है, कविता काल संवाहक होती है काल बाधित नहीं होती, नन्द बाबू की कविता भी काल बाधित नहीं है। उनकी कविता स्थूल सन्दर्भ से परे है। लेखकीय स्वाधीनता वाले लेखकीय गरिमा नन्द बाबू में देखने को मिलती। लेखक की जिम्मेदारी नंद बाबू की विधा के प्रति हमेशा परिलक्षित हुई है। आचार्य ने नन्द बाबू के जीवन को प्रेरक बताते हुए उदाहरण से बताया कि अपनी किसी चूक को भी वे बड़ी उदारता से स्वीकार करते थे, जो लेखकों के लिए अनुकरणीय है। उन्होंने कहा कि नन्द बाबू समय की भयावहता को समझ कर भी उससे आतंकित नहीं थे, उनकी कविता की ताकत है कि वह पाठक को सोचने पर मजबूर कर देती है। डॉ आचार्य के अनुसार नन्द बाबू की कविता लिखने की उनकी विधा ही उन्हें विशिष्ट बनाती है। उनकी कविता मे संयम भी है और जीवन मे संघर्ष के प्रति आस्था भी। यह समझ पाठक में नन्द बाबू की कविता को पढ़कर ही आती है। उनकी कविता समय की अनुभूति ही नहीं आत्मावेषण की कविता भी है। आचार्य के अनुसार कविता की संख्या कवि को बड़ा नहीं बनाती, बल्कि कविता का मर्म कवि को बड़ा बनाता है; नंद बाबू भी इसी अर्थ में राष्ट्रीय कवि हैं। नन्द बाबू की कविता के प्रति प्रारम्भ मे जो थोड़ा अवहेलना का भाव था उसका कारण था कि उसे समझा नहीं गया, उनकी कविता अंवेषण की कविता है। आचार्य ने आग्रह किया कि नंद चतुर्वेदी को क्षेत्र विशेष नहीं वरन सम्पूर्ण भारतीय कविता के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए।
इससे पूर्व आरंभिक वक्तव्य देते हुए डॉ माधव हाड़ा ने कहा कि नन्द चतुर्वेदी ने स्वयं को कभी खूंटे से नहीं बाँधा, भले ही उनको समाजवादी कवि कहा गया किन्तु हमेशा उनका कवि आगे रहा, वे जीवन के अभाव की कविता में राग की कविता के कवि है। उनकी कविता में कृष्ण, अर्जुन, महाभारत के चरित्र भी है तो पद्मिनी, भगवान् बुद्ध भी नज़र आते हैं। उनके अनुसार जहां पारम्परिक कविता ने देह के प्रति सरोकार कम है, वहीं नंद बाबू की कविता में यह स्पष्टता से दिखाई देता है। उनकी कविता में समय की पदचाप है। उनकी कविता समय से आगे और समय के बाद की कविता है। उन्होंने नॉस्टेलजिया का जितना उपयोग किया उतना किसी अन्य कवि ने नहीं किया। उनकी कविता हमेशा पटरी पर रही है, उनका गद्य भी अन्य गद्य की तरह जलेबी की तरह उलझा हुआ नहीं है, बल्कि सरल एवं सहज़ है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष नन्द चतुर्वेदी फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो अरुण चतुर्वेदी ने अपने उद्बोधन मे कहा कि अकादमी की अपनी सीमाएं है कि वे आयोजन कहाँ कैसे करें। नंद बाबू ने भी राजस्थान साहित्य अकादमी में भी साहित्य को बढ़ावा देने हेतु अकादमी में सदस्य संख्या बढ़ाने हेतु सरकार को भी पत्र लिखा था। उन्होंने कहा कि मैं राजनीति शास्त्र का विद्यार्थी होने के नाते उन्हें साहित्यकार के रूप मे इतना बारीकी से नहीं देख पाया हूँ। उन्होंने उनकी कविता के उदाहरण देकर बताया कि राज्य से उम्मीद उनकी कविता में है, वे समझ के साथ समय कि चेतना को परिभाषित करते हैं। नन्द बाबू के गद्य के विषय में उन्होंने कहा कि सबसे अच्छा प्रतीक अतीत राग है, वे अपनी जानकारी व अध्ययन में फैशनिबल रहते थे। वे हमारे विचारों को ताकत देते थे और देते है।
कार्यक्रम के उदघाटन सत्र में स्वागत उद्बोधन श्री अजय शर्मा सहायक संपादक, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ने दिया। जबकि नन्द चतुर्वेदी फाउंडेशन के सचिव डॉ अनुराग चतुर्वेदी ने अंत में धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने केंद्रीय अकादमी नई दिल्ली और राजकमल प्रकाशन का विशेष आभार व्यक्त किया।
नन्द चतुर्वेदी : रचनावली का लोकार्पण
उद्घाटन सत्र में ही पल्लव नंदवाना द्वारा संपादित और राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित नन्द चतुर्वेदी की रचनाओं का चार खंडों का संकलन नन्द चतुर्वेदी : रचनावली का भी लोकार्पण किया गया।