उदयपुर। एलोपैथी के बाद अब आयुर्वेद और होम्योपैथी के माध्यम से लंपी बीमारी का इलाज होगा, इसके लिए उदयपुर जिला कलेक्टर ताराचन्द मीणा ने आयुर्वेद और होम्योपैथी से इलाज की जानकारी जन जन तक पहुंचाने के लिए एक विशेष पोस्टर तैयार करवाया गया है । जिला प्रशासन, पशुपालन विभाग, आयुष विभाग तथा सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के माध्यम से तैयार किए गए इस विशेष पोस्टर का विमोचन शुक्रवार को जिला कलक्टर ताराचंद मीणा ने किया। इस पोस्टर का वितरण गांव-गांव व ढ़ाणी-ढ़ाणी में किया जाएगा जिससे पशुपालकों को इस गंभीर बीमारी से बचाव के उपायों की जानकारी प्राप्त हो सकेगी तथा इन उपायों को अपनाकर वे अपने पशुधन को रोगमुक्त रख सकेंगे।
हौम्योपैथी पद्धति से इन दवाईयों से किया जा सकता है उपचार
विमोचन किए गए पोस्टर में पशुधन को लंपी स्कीन बीमारी से बचाने तथा संक्रमित पशुओं के प्रभावी उपचार करने से संबंधी समस्त जानकारियों का समावेश किया गया है। जिसके तहत होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के अन्तर्गत आयोडाइड ऑफ पोटेशियम से बनने वाली काली आयोद दवा लम्पी वायरस के शुरूआती लक्षणों में कार्य करती है। यह दवा तब दी जानी चाहिए जब मवेशी के लम्प (गांठ) बनी हो अर्थात् संक्रमण तुरंत हुआ है। ऐसी स्थिति में इस दवा की एक डोज़ एक बार पर्याप्त होती है। इसी प्रकार यूरेनियम नाइट्रीकम दवा उस स्थिति में दी जाती है जब बीमारी का कारण गन्दगी, पेशाब की दुर्गन्ध हो, अल्सर में बदबू हो, ऐसी स्थिति में इस दवा की एक डोज़ पर्याप्त होती है। जब मवेशी के मुंह व गले में छाले हो, ऐसी स्थिति में एसिड नाइट्रीक दवा की एक डोज़ एक बार पर्याप्त होती है। जब मवेशी के घाव में अत्यंत दुर्गन्ध हो और पाँवों में सूजन हो, ऐसी स्थिति में अमोनियम नाइट्रीकम दवा के एक डोज़ एक बार पर्याप्त होती है। जब मवेशी को सांस लेने में परेशानी हो तथा मवेशी की स्थिति गंभीर हो, ऐसी स्थिति में नाइट्रोजिनम ऑक्सीजिनेटम दवा की एक डोज़ एक बार पर्याप्त होती है। जब मवेशी के मुंह व नाक से लार बह रही हो तथा चलने फिरने में कम्पन हो। ऐसी स्थिति अमाइल नाइट्रोसम इस दवा की एक डोज़ एक बार पर्याप्त होती है। जब मवेशी को तेज़ बुखार हो, लिम्फ ग्रंथियों में सूजन हो, मुंह से बहुत लार आती हो, नाक व आँख से जलन करने वाला पानी आ रहा हो, मवेशी के शरीर पर कई अंगों में बड़े घाव हो जिसमें से मवाद आ रहा हो तब मर्करी ग्रुप दवा दी जाती है। जब मवेशी को तेज बुखार हो, त्वचा पर बड़ी-बड़ी गांठें हों, ग्रंथियों में सूजन हो, नाक से हरा गाढ़ा पानी आ रहा हो और घाव हो, तब थूजा दवा का उपयोग करना चाहिए। जब मवेशी के शरीर पर बड़े-बड़े मवाद वाले घाव हो गए हों, तब वेरियोलिनम दवा लाभकारी है एवं यह वायरस संक्रमण रोकने की एक महत्वपूर्ण औषधि है। यह सभी होम्योपैथी की दवा एक बार ही दी जानी चाहिए एवं सिर्फ एक ही प्रकार की दवा देनी चाहिए। दवा की 5-10 बूंद मवेशी के लिए पर्याप्त होती है।
आयुर्वेद पद्धति से भी किया जा सकता है बचाव व उपचार
लम्पी रोग के संक्रमण से बचाव के लिए एक खुराक के लिए एक मुट्ठी तुलसी के पत्ते, 5-5 ग्राम दाल चीनी एवं सोंठ पाउडर, 10 नग काली मिर्च के तथा गुड़ की मात्रा मिलाकर तैयार कर पशुओं को सुबह-शाम लड्डू बनाकर खिलाया जाना लाभकारी है। इसी प्रकार लम्पी रोग हो जाने पर पहले तीन दिनों में पान के पत्ते, काली मिर्च, ढेले वाले नमक के दस-दस नग को अच्छी तरह पीसकर आवश्यकतानुसार गुड़ में मिलाकर एक खुराक तैयार कर लें। प्रतिदिन इस तरह की चार खुराक तैयार कर प्रत्येक तीन-तीन घंटे के अंतराल में पशु को खिलाएं। लम्पी रोग होने के 4 से 14 दिनों तक नीम व तुलसी के पत्ते 1-1 मुट्ठी, लहसुन की कली, लौंग, काली मिर्च 10-10 नग, पान के पत्ते 5 नग, छोटे प्याज 2 नग, धनिये के पत्ते व जीरा 15-15 ग्राम तथा हल्दी पाउडर की 10 ग्राम मात्रा को अच्छी तरह पीसकर गुड़ में मिलाकर एक खुराक तैयार कर लें। प्रतिदिन की तीन खुराक तैयार कर सुबह, शाम और रात को लड्डू बनाकर खिलाया जाना लाभकारी है। इसी प्रकार रोगी पशुओं को 25 लीटर पानी में एक मुट्ठी नीम की पट्टी का पेस्ट एवं अधिकतम 100 ग्राम फिटकरी मिलाकर नहलाना लाभकारी है। इस घोल के 5 मिनट बाद सादे पानी से नहलाना चाहिए। संक्रमण रोकने के लिए पशु बाड़े में गोबर के कंडे, छाने, उपले जलाकर उसमें गूगल, कपूर, नीम के सूखे पत्ते, लोबान को डालकर सुबह शाम धुंआ करें, जिससे मक्खी-मच्छर का प्रकोप कम हो पाए।